इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आदिपुरुष फिल्म के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की।
सुनवाई करते समय कोर्ट ने बोला कि हिंदू सहिष्णु है और हर बार उसकी सहनशीलता की परीक्षा ली जाती है।
कोर्ट ने कहा कि यह तो अच्छा है कि वर्तमान कंट्रोवर्सी एक ऐसे धर्म के बारे में है जिससे मानने वालों ने कहीं पब्लिक ऑर्डर को नुकसान नहीं पहुंचाया। हमें ऐसे लोगों का आभारी होना चाहिए जिन्होंने नुकसान नहीं पहुंचाया।
कुछ लोग सिनेमा हॉल बंद करने गए थे और उन्होंने केवल हल को बंद कराया किसी प्रकार का भारी क्षति नहीं पहुंचाया।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने फिल्म के डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर शुक्ला को मामले में प्रतिवादी बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र पर ऐसी टिप्पणियां करी।
कोर्ट ने डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर को पार्टी बनाते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दे दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि क्या आप देशवासियों को बेवकूफ समझते हैं।
डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को केंद्र सरकार व सेंसर बोर्ड से निर्देश प्राप्त कर यह अवगत कराने को कहा है कि मामले में क्या कार्रवाई कर सकते हैं।
लखनऊ पीठ ने यह आदेश कुलदीप तिवारी व नवीन धवन की याचिकाओं पर पारित किया। कुलदीप तिवारी की याचिका में फिल्म के तमाम कंट्रोवर्सी सीन व डायलॉग का संदर्भ देते हुए प्रदर्शन पर रोक की मांग की गई है जबकि नवीन धवन की ओर से प्रदर्शन पर रोक के साथ फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण पत्र निरस्त करने की मांग की गई है।
आपको मालूम होगा कि इस फिल्म पर नेपाल में रोक लगा दी गई है।
दूसरे दिन की सुनवाई पर कोर्ट ने कहा कि यह तो रामायण पर बनी फिल्म है.. कहीं कुरान पर डॉक्यूमेंट्री बना दी होती तो कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा हो जाता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आखिरकार फिल्म निर्माता रामायण, कुरान और बाइबल पर ऐसी विवादित फिल्म बनाते ही क्यों हैं?
कोर्ट ने कहा ऐसी फिल्म नहीं बनानी चाहिए जो लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं। कोर्ट ने यह भी बोला कि सेंसर बोर्ड को बुद्धि आनी चाहिए कि जब धार्मिक चीजों को लेकर फिल्म बनाया जा रहा है तो उस पर और सतर्कता बरतें।
कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं को चेताया कि एक बार कुरान पर कोई ऐसे विवादित डॉक्यूमेंट बनाइए फिर देखिए कानून व्यवस्था का क्या हाल होता है। कोर्ट कहा कि वह किसी धर्म विशेष के लिए नहीं खड़ी है बल्कि धार्मिक विषयों पर अदिपुरुष जैसी कोई और फिल्म बनाती तो भी कोर्ट का यही रुख होता।
सुनवाई के दौरान जस्टिस श्री प्रकाश सिंह ने फिल्म निर्माताओं को नसीहत दी कि आप लोग राम के त्याग और भरत के प्रेम को केंद्रित करने वाले फिल्म क्यों नहीं बनाते हैं जिससे लोगों को अच्छी सीख मिले।
जब फिल्म प्रोडक्शन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सुदीप सेठ ने तर्क दिया कि भगवान की वेशभूषा कहीं भी दर्शाई नहीं गई है तब फिल्म में उनकी वेशभूषा पर विरोध नहीं होना चाहिए। इस पर जस्टिस सिंह ने सुदीप सेठ से कहा कि शायद उन्होंने भारतीय संविधान की मूल प्रति को नहीं देखा, जिसके प्रारंभ में ही भगवान राम और रामायण कि अन्य चरित्रों के चित्र छापे गए हैं जिसमें सभी को बहुत ही शालीन वेशभूषा में दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच समझ कर के ही ऐसे चित्रों को रखा होगा।
अधिवक्ता सुदीप सेठ जी के पास तब जवाब नहीं रह गया जब कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या वह अपने पूजा कक्ष में आदिपुरुष फिल्म में दिखाए गए पहनावे वाले वेशभूषा के आराध्य को रखेंगे!
और आगे की बात करें तो कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश डिप्टी सॉलीसीटर जनरल एसबी पांडे से पूछा कि आखिर केंद्र सरकार क्या कर रही है! स्वयं सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म रिलीज करने के लिए दिए गए प्रमाण पत्र का रिव्यू क्यों नहीं करती है ।
जब पांडे ने कहा कि सेंसर बोर्ड में संस्कारवान लोग थे, जिन्होंने फिल्म को पास किया । तब कोर्ट ने कटाक्ष किया कि ऐसे संस्कारवान लोगों का भगवान ही मालिक है जिन्होंने फिल्म पास की।
मूवी के डायरेक्टर और डायलॉग राइटर को यह मालूम होना चाहिए कि सिनेमैटोग्राफी लिबर्टी के नाम पर कुछ का कुछ नहीं कर देना चाहिए।
वास्तव में यदि आपने इस मूवी को देखा होगा तो आपको मालूम चल गया होगा कि इस मूवी के साथ कितने छेड़छाड़ किए गए।
यह मूवी रिलीज होने से पहले मनोज मुंतशिर शुक्ला जी बोल रहे थे कि यह मूवी रामायण पर बेस्ड है और विवाद सामने आ गया तो बोल रहे हैं कि यह मूवी रामायण से इंस्पायर्ड है।
गरुड़ की जगह आप चील को दिखा रहे हैं।
रावण चमगादड़ पर बैठकर उड़ता है।
शूर्पणखा वास्तव में भरे दरबार में आई थी लेकिन मूवी में दिखा रहे हैं कि अकेले मिल रही है।
मूवी में रावण के द्वारा मांस को हाथ लगाया जा रहा है।
डायलॉग ऐसा की सुनके आप को क्रोध आ जाए.. तेल तेरे बाप का, कपड़ा तेरे बाप का, जलेगी तेरे बाप का।
ऐसा लगता है कि मूवी को यह सोचकर बनाया कि कुछ भी बना दो बस धर्म डाल दो, लोग आएंगे देखेंगे पैसे छप जाएंगे। लेकिन भारत की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है कि आप उनकी भावनाओं के साथ छेड़छाड़ करें और लोग तब भी चुप बैठे।
आप कुछ बातों पर ध्यान देंगे तो पाएंगे कि ऐसा लगता है कि चमगादड़ को गेम ऑफ थ्रोंस के ड्रैगन से कॉपी किया गया है। बंदरों को हॉलीवुड की कोई मूवी है एजेस करके उस से कॉपी किया गया लगता है। लंका को, थॉर मूवी आपने देखा होगा वहां पर जो एसगार्ड होता है सेम टू सेम वैसा प्रतीत होता है बस उन्होंने क्या किया है कि वह एसगार्ड गोल्डन था और इसको इन्होंने ब्लैक में कर दिया।
Kai fighting scenes Avengers endgame ki tarah lagte Hain.
एक बात मैंने गौर किया है कि जो सीट हनुमान जी के लिए रिजर्व करवाए थे। उसको आगे की लाइन में क्यों रिजर्व कराया गया। आप recliner सीट भी रिजर्व करा सकते थे। हम सबको मालूम है कि सबसे आगे बैठकर मूवी देखने में बिल्कुल नहीं अच्छा लगता है। और दूसरी ओर जहां पर सिंपल seat के लिए कम पैसे देने होते हैं, फॉर एग्जांपल 200 या 250 हो वही आपको Recliner seat के लिए 800 से लेकर 1000 ya 1200 तक चार्ज देना पड़ता है।
कंक्लूजन की बात करें तो समझ में आएगा इस मूवी का मेन उद्देश्य केवल और केवल पैसा छापना था। आजकल देश में धर्म की बातें बहुत ज्यादा हो रही हैं। Director or dialogue writer soche honge ki movie bnao Dharm ko jodo aur sabke samne paros do. Bahubali se Prabhas hit hue the. उनकी पॉपुलैरिटी को देखते हुए उनको राम का किरदार दे दिया गया। लक्ष्मण जी का किरदार इतना महत्वपूर्ण होता है। उसके बाद भी उनके किरदार पर ध्यान नहीं दिया गया। सोचो अगर यह मूवी आज की जनरेशन देखेगी तो क्या बोलेगी, क्या सोचेगी कि रामायण में वास्तव में ऐसे था लोग ऐसे ही लहजे में बात करते थे। मैंने एक यूट्यूब चैनल पर रिव्यू देखा उसमें एक लड़का या बोलता हुआ दिखाई दिया गया की बहुत अच्छी कॉमेडी मूवी थी। फिलहाल इस मूवी का विरोध हो रहा है, टिकट प्राइस कम होने के बावजूद या कम कर देने के बावजूद भी लोग मूवी देखने नहीं जा रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में कई writ पड़ चुकी हैं जिस पर सुनवाई भी हो रहा है। मूवी के कई डायलॉग्स में बदलाव किया गया है। अब फ्यूचर में जो भी धर्म से जुड़े हुए मूवी आएंगे उसमें इस तरह उल जलूल डायलॉग या उल जलूल सीन डालने से लोग बचेंगे।
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