Friday 23 June 2023

क्यों होती है बलात्कार की घटनाएं और आखिर कब तक चलेगा यह अपराध?

बलात्कार मानव सभ्यता के विकास के उन तमाम दावों को झुठलाता है जहां पर यह कहा जाता है कि महिलाएं,बच्चे, बच्चियां सुरक्षित हैं। बलात्कार अपने स्वरूप में घृणित होने के साथ-साथ यह अपने प्रभाव में और भी अधिक घृणित है।

अन्य घटनाओं के इतर इस घटना में पीड़ित को ही सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। साथ ही साथ अन्य प्रकार की समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। बलात्कार सिर्फ शारीरिक बल द्वारा किया गया यौन दुराचार नहीं है बल्कि इसके दायरे में हुए तमाम यौन शोषण आते हैं जिन्हें किसी दबाव के कारण किया जा रहा होता है। बलात्कार एक जटिल फिनोमिना है और अलग-अलग बलात्कार की घटनाओं के पीछे कुछ समान और कुछ अन्य कारण काम करते हैं। हरियाणा हो या दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश हो या किसी अन्य राज्य में कोई बलात्कार की घटनाओं को एक तरीके से नहीं समझा जा सकता है। इसी तरह पिता, मामा, चाचा, भाई या पड़ोसी द्वारा किया गया बलात्कार अलग समझ की मांग करता है। अमीरों द्वारा गरीब महिलाओं से बलात्कार में ठीक वे कारण काम नहीं करते जो किसी गरीब द्वारा किसी अमीर महिला से बलात्कार के मूल में होते हैं। 

बलात्कार केवल महिलाओं या लड़कियों या बच्चों के साथ नहीं होता बल्कि छोटी उम्र के लड़कों, थर्ड जेंडर और पशुओं के साथ भी होता है। इस विविधता से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि बलात्कार के मूल में यौन इच्छा की आक्रामकता एक कारण के रूप में मौजूद भले हो, परंतु यह एक अकेला कारण नहीं है और ना ही महत्वपूर्ण। इसलिए बेहतर होगा कि बलात्कार के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए उसके कारणों पर विचार करें। 

पहले आइए इस प्रश्न पर गौर करते हैं कि उत्तर-पूर्व के मातृसत्तात्मक समाजों की तुलना में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे प्रांतों में बहुत ज्यादा बलात्कार क्यों होते है?

बलात्कार कानून व्यवस्था से ज्यादा समाज और संस्कृति का मसला है। इसकी जड़े पुरुषवादी सामाजिक संरचना या पितृसत्ता में धंसी हैं। ऐसे समाजों में हम पराया देखते हैं कि बच्चों की परवरिश की जो प्रक्रिया होती है वह लिंग भेद के मूल्यों पर टिकी दिखाई देती है। जिसकी वजह से बचपन में ही यौन आक्रमकता के बीज पड़ जाते हैं।

उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि लड़कों को(लड़कियों को नहीं) बचपन से ही बंदूक, तीर कमान, तलवार जैसे मरदाना खिलौने दिए जाने का परिणाम यह होता है कि हथियारों की मूल में बसी हिंसा की भावना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बनने लगते हैं.. उनके साहस, आक्रमकता का, शारीरिक मजबूती जैसे लक्षणों की प्रशंसा की जाती है और यदि वह विनम्र है, संवेदनशील है तो ऐसे गुणों के साथ अगर है तो उसका मजाक उड़ाया जाता है।
 यदि कोई लड़का रो देता है तो उसको लड़की बोल बोल कर चिढ़ाया जाता है। 

लड़कों को घर के काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है क्योंकि ऐसे कामों के लिए घर में मां बहने हैं और बाद में उसकी पत्नी होगी। उसको राजा बेटा कहकर संबोधित किया जाता है। इन्हीं सब कारणों से या ऐसी परवरिश से वह खुद को औरत का मालिक समझने लगता है। Is tarah ke parvarish ke Karan adhiktar ladke patni ke roop mein ek gulam ki Khoj karte Hain

वह पत्नी को तथाकथित आर्थिक सुरक्षा देकर बदले में उसकी आजादी ही छीन लेना चाहता है बल्कि उसे वस्तु की तरह इस्तेमाल करने का भी हक हासिल कर लेना चाहता है। वह शादी भी करता है तो घोड़ी पर बैठकर जाता है जैसे कि वह लड़ने या अपहरण करने जा रहा है। लड़की के घरवाले भी कन्यादान ऐसे करते हैं मानो कोई वस्तु सौंप रहे हों। जिस दिन उसका सुहागरात होता है उस दिन लड़का युद्ध जीतने की मूड में रहता है। वह साबित कर देना चाहता है कि उसने अपनी पत्नी के शरीर को भोगने का मुक्त लाइसेंस हासिल कर लिया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ ऐसे समुदायों में भी प्रथा है कि सुहागरात का जो बेड होता है उस पर बिछाई गई सफेद चादर पर सुबह लाल धब्बे ना मिले तो लड़कों के पुंसत्व पर ही संदेह किया जाने लगता है।

यौन संबंध के लिए पत्नी की कंसेंट इन समुदायों के पुरुषों की कल्पना से परे की वस्तु है। पत्नी का बलात्कार उनका दैनिक और विवाह से अधिकार बन जाता है । और जब लंबे समय से संचित यही दृष्टिकोण सड़कों पर उतर जाता है तो 'बलात्कार' कहलाता है।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बलात्कार की अधिकांश घटनाएं घर-परिवार के भीतर या आस पड़ोस में ही घटती है। इनमें से अधिकांश मामले तो कभी सामने ही नहीं आ पाते क्योंकि इसमें औरतों का ज्यादा नुकसान होता है। हम सभी जानते हैं कि पितृसत्तात्मक समाजों में औरतों की पूरी जिंदगी इस बात पर टिकी होती है कि उसका पति और परिवार उसे बेघर ना कर दे। अर्थात स्त्री की विवशता हो गई है कि वह परिवार जैसे संस्था पर आश्रित रहे भले संस्था से उसके शोषण को वैधता मिलती हो। 

स्त्रियों की जिंदगी का सबसे बड़ा जुआ यही है कि उन्हें कैसा पति और कैसा ससुराल मिलेगा। 

बलात्कार एक ऐसी घटना है जो लड़की या स्त्री की भावी जिंदगी को बर्बाद कर सकता है। हमारा समाज स्त्री की पवित्रता उसके शरीर से तय करता है, मन से नहीं। 

यह समाज बलात्कार को स्त्री के साथ हुई एक साधारण दुर्घटना के रूप में नहीं लेता बल्कि उसे विवाह और कई सामाजिक संबंधों से बेदखल कर देता है। औरत जिसके पास सामाजिक सुरक्षा का एकमात्र विकल्प परिवार है वह इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकती। इसलिए बलात्कार हो भी जाए तो अधिकांश मामलों में वह ना तो शिकायत करती है और ना ही पलट कर कोई जवाब देती है। धीरे-धीरे वह स्त्री सब कुछ सहन कर लेने की आदी हो जाती है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि लगभग 90 परसेंट से ज्यादा रिपोर्टेड केसेस घर के भीतर या आस पड़ोस में होते हैं।

अब दूसरे स्तर की बात करें तो बलात्कारी दमनकारी कार्यवाही की भूमिका के रूप में सामने नजर आती है। इस भूमिका में इसका इस्तेमाल किसी परिवार या समूह को नीचा दिखाने या उससे बदला लेने के लिए होता है। देखा जाए तो पाएंगे लड़कों द्वारा दी जाने वाली गालियां आमतौर पर दूसरे की मां बहन के बलात्कार करने की धमकियां ही होती है। ऐसी गालियां इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हमारे समाज में औरतों को यौन सुचिता को घर की इज्जत का प्रतीक बना दिया है।

किसी घर या समुदाय की इज्जत तार-तार करनी हो तो उसकी औरतों का बलात्कार करना सबसे सरल उपाय समझा जाता है। उदाहरण के रूप में देखें तो फूलन देवी का गैंगरेप यौनिक नहीं बल्कि जातीय दमन का मामला था। Sampradayik dangon ke dauran hamesha dabang samuh kamjor samuh ki auraton ka balatkar karte Hain।

बलात्कार के आंकड़ों को गहराई से देखेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश मामलों में यह सिर्फ यौन क्रिया का मामला ना होकर दोहरे और तिहरे दमन का मामला होता है। कई बलात्कारी ऐसे होते हैं जो क्रूरता से औरतों का अंग भंग तक कर देते हैं तो कुछ unnatural sex तथा मारपीट करके उन्हें नोच डालने की कोशिश करते हैं। यह सब इसलिए होता है कि इसे दूसरा समुदाय डर जाए, डराने के लिए सॉफ्ट टारगेट के तौर पर महिलाओं को चुना जाता है। क्योंकि बलात्कार करने वाले कायर होते हैं, बुजदिल होते हैं, इस समाज के गंदी नाली के कीड़े होते हैं। 

और आगे की बात करें तो यह मत समझिए कि बलात्कार में यौन आक्रामकता की कोई भूमिका नहीं होती है। बड़े शहरों में जो बलात्कार होते हैं उन वारदातों में यौन आक्रामकता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। दरअसल, किसी समाज में यौन इच्छाओं की तीव्रता और उसकी संतुष्टि के अवसरों में संतुलन होना बहुत ज्यादा जरूरी है। इस संतुलन का अभाव ही बलात्कार की वारदातों के लिए उर्वर भूमि का काम करने लगता है। समस्या यह है कि बड़े शहरों की संस्कृति ने पिछले कुछ समय में जिस अनुपात में यौन इच्छाएं भड़काई हैं उस अनुपात में हर वर्ग को उनकी पूर्ति के अवसर मुहैया नहीं कराए गए है। खास तौर पर बड़े शहरों का निम्न वर्ग इस वंचन का भयानक शिकार है और यही कारण है कि बड़े शहरों में रिपोर्ट रेप केसेस की घटनाओं में निम्न तथा निम्न मध्यम वर्ग के आरोपी बहुत ज्यादा अनुपात में पाए जाते हैं। 

और विस्तार में बात करें तो हम जानते हैं कि शहरों में मीडिया इंटरनेट की सघन उपस्थिति यौन अभिव्यक्तियों विशेषता पोर्न को सहज उपलब्ध बना देती है। वैसे तो पोर्न हर युग में रहा है पर आज का 'ऑडियो विजुअल पोर्न' प्रभाव पैदा करने के मामले में बहुत आगे हैं। देसी विदेशी पोर्न की उपलब्धता किशोरों और युवाओं विशेषता लड़कों को उसका दीवाना बना देती है। रात दिन नए एवं अनुभव की कल्पना में डूबे रहते हैं। टीवी पर दिखाए जाने वाले कई विज्ञापन उनकी यौन इच्छाओं को गैरजरूरी तौर पर भड़काते हैं। यह बात विशेष रूप से परफ्यूम, कंडोम तथा अंडरवियर आदि के विज्ञापन में दिखाई देती है जिनमें सुंदर लड़कियों का  ऑब्जेक्टिवफिकेशन होता है। आजकल ओटीटी भी सॉफ्ट पोर्न को पेश करने लगा है। यह सारे दृश्य युवाओं के अवचेतन मन पर धीरे-धीरे अपना असर डालती रहती हैं। 

पोर्न साइट्स देख देखकर लोगों की अजीबोगरीब इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। हमें इस बात का भी ध्यान देना होगा कि कैरियर में इतना ज्यादा कंपटीशन होने के कारण लोग सही समय पर सेटल नहीं हो पाते जिसके कारण विवाह की औसत उम्र लगातार बढ़ती जा रही है।  हमें मालूम है कि हम यौन इच्छाओं के विस्फोट की युग में रह रहे हैं। हमारे समय के लोगों की जितनी रुचि यौन अनुभव में है उतनी शायद कभी नहीं थी। या भूख कोई साधारण या नेचुरल नहीं है बल्कि इसका काफी बड़ा हिस्सा बाजार, फिल्मी गीतों और पॉर्न द्वारा रच दिया गया है।

अब आप सोच रहे होंगे कि जिस समाज में यौन इच्छाएं इतने भयानक तरीके से बढ़ी हुई है वहां उनकी पूर्ति की क्या विकल्प है? दरअसल, इन विकल्पों की दुनिया में काफी ऊंच-नीच है। जिस विज्ञापनीय सुंदरता के भोग के सपने लोग पाल रहे हैं वैसे सुंदरता समाज में कम लोगों तक सीमित है।
इन्हीं सब चीजों  के कारण एक भयानक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है जो कभी-कभी हत्या इत्यादि का कारण भी बन जाती है। इस व्यवस्था को सुंदरता का पूंजीवाद कहा जा सकता है। यूं तो यह पूंजीवाद विवाह व्यवस्था के भीतर हमेशा मौजूद रहा है और इसने सबसे सुंदर लड़कियां सबसे अमीर और ताकतवर पुरुषों को उपलब्ध कराई है पर आजकल यह सबसे भयानक रूप में मौजूद हो गया है। जो सुंदर और आकर्षक किशोर और युवा हैं वह इस पूंजीवाद के सबसे सफल खिलाड़ी हैं। अंग्रेजी स्कूलों में, अच्छे कॉलेजों में पढ़ने वाले युवकों को या मौका हमेशा उपलब्ध है कि वे तथाकथित स्मार्ट लड़कियों या विज्ञापन सुंदरियों से मैत्री साध कर अपनी यौन-इच्छाओं से मुक्त हो जाए। और जो लोग इस वर्ग से बाहर हैं उनके लिए यौन इच्छाओं के इस भड़काऊ बाजार में कुंठित रहना मजबूरी है। उनमें भी अमीरों को कोई दिक्कत नहीं है , दुनिया के हर बड़े शहर में सेक्स भी एक उत्पाद है जिसे खरीदा जा सकता है। Agar Jeb Bhari ho to apni pasand ke anusar sundarta ke is bajar mein kuchh bhi hasil kar sakte hain aur apne kunthaon se aasani se Bach sakte hain। बाकी वर्गों के पास अवैध रूप से बढ़ी हुई इच्छाओं की पूर्ति के कम मौके होते हैं। 

ऐसी कल्पनाओं के कारण ऐसे लोगों के भीतर कभी न मिटने वाली कुंठा भर जाती है। यही कुंठा किसी नाजुक छड़ में उन्हें मजबूर करती है कि वह सब आगे पीछे भूल कर किसी सुंदर स्त्री को दबोच लें और बाद में परिणामों की भयावहता देखकर पछताते रहे। 

इससे जुड़े और कारणों पर गौर करें तो पता चलता है कि इसका संबंध असंतुलित विकास, शहरीकरण और माइग्रेशन जैसे विषयों से भी है। हम सब जानते हैं कि बड़े-बड़े शहरों में लाखों लोग रोजगार की तलाश में अपना घर बार छोड़ कर आते हैं। यह बस, ऑटो, रिक्शा चलाते हैं या मजदूरी, चौकीदारी जैसे थकाऊ काम करते हैं। इन लोगों की आय इतनी कम होती है कि यह लोग अपने परिवार अपने बच्चों को साथ में नहीं रख पाते हैं। ऐसे लोगों को ना पारिवारिक आत्मीयता नसीब होती है और ना ही होमली प्रेम की दुनिया। इनका काम इतना बोझिल होता है कि वह सृजनात्मक संतोष नहीं दे पाता। यह संपूर्ण भावनात्मक व सृजनात्मक असंतोष एक और इन्हें शराब और नशे की ओर धकेलता है तो दूसरी ओर इनकी यौन आक्रमकता और अपराध करने की हिम्मत को बढ़ाता है। 


मेडिकल साइंस के कुछ लोगों द्वारा कही गई इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन पुरुषों में यौन आक्रमकता पैदा करता है। तनाव से भरी जिंदगी के समानांतर हर समय आसपास मौजूद महानगरीय चकाचौंध इनकी शारीरिक भूख को उद्दीप्त कर देती है। इतनी ज्यादा कि यौन असंतोष इनका स्थाई भाव हो जाता है और बार-बार बेचैन करता है। उनके पास यह विकल्प होता है कि वह किसी वेश्या के पास चले जाएं पर वेश्यावृत्ति भी हमारे देश में गैरकानूनी है । अगर गैरकानूनी वाले पक्ष को छोड़ दें तो भी इनकी इतनी हैसियत नहीं होती कि वह फाइव स्टार होटलों की विज्ञापन वाले सुंदर कॉल गर्ल्स के पास जा सके।

 परंपरागत रेड लाइट इलाके में यह जा सकते हैं पर वह के सपनों को संतुष्ट नहीं कर पाता। कुछ देशों ने इस असंतोष को दूर करने के लिए सेक्सटॉयज की अनुमति दी है जो काफी हद तक इस अभाव की पूर्ति करने में कारगर साबित होती है। पर जो कि भारत में है विकल्प भी गैरकानूनी है ।

इसलिए कुंठित युवाओं के तनाव का विरेचन हो नहीं पाता। इन सब का परिणाम यह होता है कि वे दिमाग में लिए रहते हैं। यह एक अजीब सी कुंठा को जन्म देती है यही कारण है कि अगर कभी कोई  लड़की इनके जाल में फंस जाती है तो मामला सिर्फ रेप तक नहीं रह जाता बल्कि रेप के बहाने हर प्यास बुझा लेना चाहते हैं। उसकी शरीर से बदला लेना चाहते हैं। उसकी चीख किनके कुंठित मन को गहराई तक संतुष्ट करती हैं।

ज्यादातर बलात्कार का एक कारण सामाजिक दबाव की अनुपस्थिति में भी छिपा है । बलात्कार के अधिकांश अपराधियों को या भय नहीं होता कि उनका परिवार समाज इनका बहिष्कार कर देगा। 

बड़े शहरों में होने वाले बहुत से बलात्कार उन लोगों द्वारा किए जाते हैं जो बाहर दूसरे क्षेत्र से आए हैं। और अपने समाज के दबाव से तात्कालिक तौर पर मुक्त हैं। जातिवाद या सांप्रदायिक दमन के समय तो सामाजिक दबाव पूरी तरह हट जाता है । अगर समाज हित के रूप में ऐसे लोगो को अपराधी कर दें तो अधिकांश लोग ऐसी हिम्मत नहीं कर सकेंगे।

सामाजिक कानून से लड़ने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है। कानून के भय का उपस्थिति होने पर बलात्कार का स्पष्ट कारण अपराधियों को पता होता है कि कानून व्यवस्था बहुत लचर है, उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती । अदालत में यह साबित कर दिया जाता है कि यौन संबंध में लड़की की कंसेंट थी।

  हमें मालूम है कि न्यायाधीशों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। कानून की प्रोविजंस कमजोर है।

 अधिकांश मामलों में आरोपी जमानत पर छूटकर बाहर घूमते हैं और शिकायत करने वाली लड़की हमेशा दूसरी घटना के डर  के बारे में सोचकर जीने लगती है।

 कानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और थका देने वाली है यह बलात्कार से भी ज्यादा प्रताड़ित करती है।

 अदालतों के पास न्यायाधीश कम हैं और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुले हैं । वहां भी सजा हो जाए तो राष्ट्रपति से दया की अपील का प्रावधान है ।

यह सब होते होते न्याय का गला पूरी तरह घुट चुका होता है ।

अपराधियों के मन में कुल मिलाकर भय का संचार नहीं हो पाता । 

सवाल यह भी है कि बलात्कार की संस्कृति को कैसे रोका जा सकता है।

 इसके लिए कानूनी उपाय तो एक छोटा सा समाधान है। बहुत से उपायों को एक साथ लागू करने में डरना नहीं चाहिए कि सामाजिक उपाय धीरे धीरे से असर दिखाते हैं।

इसलिए संसय से बचते हुए कई उपायों को एक साथ लागू करना होगा। यौन आक्रमण के मामले के लिए पूरे देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए। इनमें महिला न्यायाधीशों की उपस्थिति पर बल दिया जाए। इन्हें मामला निपटाने के लिए अधिकतम 3 महीने का समय दिया जाए । किसी अदालत में ज्यादा मामले हो तो ऐसी ही दूसरी अदालत का मामला स्थानांतरित किया जाए   हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे ही अवधि निर्धारित करें राष्ट्रपति जैसे मामलों पर दयालु होने से बचे और 3 महीनों के भीतर दया याचिका का निपटारा करें । पीड़िता को मुक्ति मिले।


 अगर अदालत में तकनीकी माध्यम हो तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की मदद से उसकी गवाही हो ताकि उस पर दबाव न पड़े इसके अलावा अगर अपराधी न्यायाधीश के सामने गुनाह कबूल कर ले तो पहले अपराध की स्थिति में दंड की मात्रा कुछ कम भी की जा सकती है ताकि न्याय मिलने में देरी ना हो । 
अगर बलात्कार किसी छोटी बच्ची का हो या उसमें शामिल हो तो किसी भी स्थिति में जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

ऐसे मामलों के लिए हर शहर में पुलिस की विशेष शाखा खाएं क्राइम ब्रांच की तरह हों । जिनमें अधिकांश कर्मचारी महिलाएं हों, जो पुरुष कर्मचारी हों, उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह महिलाओं के दर्द को महसूस करें ।

 थर्ड जेंडर के अधिकारों तथा उनकी सामाजिक दशा के संबंध में संवेदनशीलता बनाए रखने के लिए इस विभाग के सभी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ।

वेश्यावृत्ति को समाप्त करना किसी समाज के बस की बात नहीं है इस बात पर गंभीर चर्चा का वक्त आ गया है कि क्या उसे वैधता प्रदान की जाए । इस कदम से बलात्कार की संभावना तो कम होगी और भी कई लाभ होंगे जैसे या दलालों द्वारा वेश्याओं के शोषण को रोकेगा उनके बच्चों के मानव अधिकारों को सुरक्षित करेगा । रेप को कम करने में भी सहायक होगा इसके अलावा प्लास्टिक ट्वॉयज के बारे में सोचा जा सकता है। अगर ऐसा हो जाए तो शायद हम संभावित बीमारियों से बच सकें।

पुलिस, सेना तथा अर्धसैनिक बलों के कर्मचारियों को नियमित अंतराल पर घर जाने का मौका मिलना चाहिए ताकि उनकी यौन संतुष्टि पूरा होंसके।  काम का दबाव और तनाव भी इतना नहीं होना चाहिए कि वह रेप का रूप ले ले । 

युवा कर्मियों को यथासंभव ऐसी जगहों पर नियुक्त किया जाना चाहिए कि वह चाहे तो अपने परिवार को साथ रख सके। आसानी से अपने घर आ जा सके ।

शहरों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की स्थिति सुधारने की कोशिश की जानी चाहिए कि नहीं इतना वेतन मिलना चाहिए कि वह अपने परिवार के साथ शहर में रह सके।

 छुट्टियां भी इतनी जरूर मिलेगी वह मानवीय तनाव से बच सकें और समय-समय पर अपने घर जा सके। काम की अवधि भी सामान्य स्थिति में 8 से 9 घंटे से ज्यादा ना हो।

महिलाओं की शिक्षा मिलेगा , यह सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए शिक्षा रोजगार परक हो कि वे धीरे-धीरे दूसरों का निर्भरता से मुक्त हो सके।

महिलाओ की उपलब्ध अधिकारों की विस्तृत जानकारी दी नहीं जानी चाहिए।


आत्मरक्षा का बुनियादी प्रशिक्षण उनके पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए ताकि वह सॉफ्ट टारगेट ना रहे ।

उन्हें आत्म रक्षा के लिए छोटे-मोटे उपाय जैसे मिर्च का स्प्रे सेफ्टी पिन भी साथ रखना के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

 उन्हें संपत्ति में हिस्सा दिए जाने का मामला गंभीरता से उठना चाहिए । उनकी सामाजिक सुरक्षा बढ़ेगी उतनी ज्यादा विरोध कर सकेंगी और अपराध कम हो जाएगा ।

एक ऐसे फंड का निर्माण भी किया जाना चाहिए आर्थिक सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि किसी दुर्घटना की स्थिति में उनका पुनर्वास आसान हो सके।

जिस तरह फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड की व्यवस्था है उसी तरह टीवी के विज्ञापनों और कार्यक्रमों के लिए भी होनी चाहिए। सरकार की अनावश्यक हस्तक्षेप से बचने के लिए इसकी सदस्यता समाज शास्त्रियों , प्राध्यापकों और न्यायाधीशों वरिष्ठ पत्रकार को कर दी जानी चाहिए।

 रात के 11:00 बजे से पहले वही कार्यक्रम दिखाया जाने चाहिए जो बच्चों के मन पर अनुचित प्रभाव न डाले।

पोर्न साइट्स को रोकने का उपाय हो सकता है तो किया जाना चाहिए ।

 स्कूलों में सेक्स एजुकेशन नियमित रूप से बताना चाहिए। 

बच्चों को गुड टच बैड टच के बारे में बताना चाहिए।

 किसी भी विधानमंडल या पंचायत के चुनाव में ऐसे व्यक्तियों के प्रत्याशी बनने पर रोक लगाई जानी चाहिए जिनको ऐसे किसी मामले में अपराधी सिद्ध हुआ हो या जिसके विरूद्ध न्यायालय को प्रथम दृष्टया रूप से दिखाई पड़े।


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