Friday, 30 June 2023

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Vithoba 🏵️🙏

बाबा नागार्जुन

बाबा नागार्जुन के नाम से लोकप्रिय रहे जनकवि वैद्यनाथ मिश्र जी का जन्म 1911 में दिन 30 जून को हुआ था।

इनका जन्म बिहार के दरभंगा जिले में हुआ था।

बाबा नागार्जुन ने मैथिली में कविता लिखने की शुरुआत की थी बाद में हिंदी लेखन में उतर गए।

बाबा नागार्जुन को वंचितों का आवाज कहा जाता था।

बाबा नागार्जुन को आपातकाल में जेल भी जाना पड़ा था। सत्ता के विरुद्ध खुलकर लिखते थे बाबा नागार्जुन।



Thursday, 29 June 2023

Ayush

कटहल

तमिलनाडु के #पनरुती में स्थित इस पेड़ को लोग विरासत की तरह मानते हैं। 200 वर्ष से अधिक पुराना यह पेड़ साल में 150-200 फल देता है।

कटहल का यह पेड़ पूरी दुनियां में मशहूर हैं।

Artificial intelligence based tool se dub honge YouTube videos

यदि आप यूट्यूब पर क्रिएटर हैं और अपनी वीडियो को कई भाषाओं में डब करना चाहते हैं, तो यह न्यूज़ आपके लिए है।

यूट्यूब के नए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फीचर्स से क्रिएटर अपने वीडियो को कई भाषाओं में डब कर सकते हैं। 

कई भाषाओं में वीडियोस ना पहुंचा पाने के कारण यूट्यूब पर व्यूज कम आता है।

वर्तमान में यह टूल अंग्रेजी, स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा को ही सपोर्ट कर रहा है। 

यूट्यूब क्रिएटर की आवाज और हाव-भाव में प्रदर्शित करने वाली वीडियो टूल की भी टेस्टिंग कर रहा है।

जल्दी ही यह फीचर यूट्यूब पर जोड़ दिया जाएगा। 

पिंक व्हाट्सएप को लेकर जारी की गई चेतावनी

यदि आप पिंक व्हाट्सएप लिंक पर क्लिक कर देते हैं तो आपके डिवाइस पर हैकर्स द्वारा हमला किया जा सकता है। 


आजकल व्हाट्सएप पर एक नया मैसेज फॉरवर्ड हो रहा है। ऐसे फॉरवर्ड मैसेज में आपको दिखाई दे रहा होगा कि इस लिंक पर क्लिक करके आप पिंक व्हाट्सएप डाउनलोड कर सकते हैं। 

यदि आप भी पिंक व्हाट्सएप को डाउनलोड कर लेते हैं तो आपका व्हाट्सएप पिंक तो नहीं होगा लेकिन आपके व्हाट्सएप का रिमोट एक्सेस हैकर्स को जरूर मिल जाएगा। 

प्राइवेसी को मेंटेन करने के लिए और धोखाधड़ी से बचने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं..

पहली बात अपने फोन में किसी भी तरह का फर्जी apps ना रखें, दूसरी बात आपने गलती से पिंक व्हाट्सएप डाउनलोड कर लिया है तो तुरंत उसको डिलीट मार दे, तीसरी बात किसी लिंक पर तभी क्लिक करें अगर आपको लगता है कि वह सिक्यॉर लिंक है, चौथी बात ऐप डाउनलोड करने के लिए केवल और केवल प्ले स्टोर या आईओएस एप स्टोर का ही इस्तेमाल करें। पांचवी बात किसी भी लिंक को जिसमें फ्री का रिचार्ज, फ्री का करोड़ों, 100 करोड़ रूपए आपको देता है उसको फॉरवर्ड ना करें।


अपना पासवर्ड, क्रेडिट या डेबिट कार्ड डिटेल्स किसी भी अनजाने वेबसाइट पर या अनजाने लोगों से शेयर करने से बचें। 

आज के सोशल मीडिया के युद्ध में अपने आप को विजय रखने के लिए तैयार करें। 

धन्यवाद!

Wednesday, 28 June 2023

हर बार हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा क्यों ली जाती है?

लखनऊ खंडपीठ ने आदिपुरुष मूवी पर मौखिक टिप्पणी की।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आदिपुरुष फिल्म के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की।

सुनवाई करते समय कोर्ट ने बोला कि हिंदू सहिष्णु है और हर बार उसकी सहनशीलता की परीक्षा ली जाती है। 

कोर्ट ने कहा कि यह तो अच्छा है कि वर्तमान कंट्रोवर्सी एक ऐसे धर्म के बारे में है जिससे मानने वालों ने कहीं पब्लिक ऑर्डर को नुकसान नहीं पहुंचाया।  हमें ऐसे लोगों का आभारी होना चाहिए जिन्होंने नुकसान नहीं पहुंचाया।

कुछ लोग सिनेमा हॉल बंद करने गए थे और उन्होंने केवल हल को बंद कराया किसी प्रकार का भारी क्षति नहीं पहुंचाया।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने फिल्म के डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर शुक्ला को मामले में प्रतिवादी बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र पर ऐसी टिप्पणियां करी।

कोर्ट ने डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर को पार्टी बनाते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दे दिया है।


कोर्ट ने कहा है कि क्या आप देशवासियों को बेवकूफ समझते हैं।

डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को केंद्र सरकार व सेंसर बोर्ड से निर्देश प्राप्त कर यह अवगत कराने को कहा है कि मामले में क्या कार्रवाई कर सकते हैं। 

लखनऊ पीठ ने यह आदेश कुलदीप तिवारी व नवीन धवन की याचिकाओं पर पारित किया। कुलदीप तिवारी की याचिका में फिल्म के तमाम कंट्रोवर्सी सीन व डायलॉग का संदर्भ देते हुए प्रदर्शन पर रोक की मांग की गई है जबकि नवीन धवन की ओर से प्रदर्शन पर रोक के साथ फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण पत्र निरस्त करने की मांग की गई है।

आपको मालूम होगा कि इस फिल्म पर नेपाल में रोक लगा दी गई है।

दूसरे दिन की सुनवाई पर कोर्ट ने कहा कि यह तो रामायण पर बनी फिल्म है.. कहीं कुरान पर डॉक्यूमेंट्री बना दी होती तो कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा हो जाता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आखिरकार फिल्म निर्माता रामायण, कुरान और बाइबल पर ऐसी विवादित फिल्म बनाते ही क्यों हैं?

कोर्ट ने कहा ऐसी फिल्म नहीं बनानी चाहिए जो लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं। कोर्ट ने यह भी बोला कि सेंसर बोर्ड को बुद्धि आनी चाहिए कि जब धार्मिक चीजों को लेकर फिल्म बनाया जा रहा है तो उस पर और सतर्कता बरतें। 

कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं को चेताया कि एक बार कुरान पर कोई ऐसे विवादित डॉक्यूमेंट बनाइए फिर देखिए कानून व्यवस्था का क्या हाल होता है। कोर्ट कहा कि वह किसी धर्म विशेष के लिए नहीं खड़ी है बल्कि धार्मिक विषयों पर अदिपुरुष जैसी कोई और फिल्म बनाती तो भी कोर्ट का यही रुख होता।

सुनवाई के दौरान जस्टिस श्री प्रकाश सिंह ने फिल्म निर्माताओं को नसीहत दी कि आप लोग राम के त्याग और भरत के प्रेम को केंद्रित करने वाले फिल्म क्यों नहीं बनाते हैं जिससे लोगों को अच्छी सीख मिले।

जब फिल्म प्रोडक्शन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सुदीप सेठ ने तर्क दिया कि भगवान की वेशभूषा कहीं भी दर्शाई नहीं गई है तब फिल्म में उनकी वेशभूषा पर विरोध नहीं होना चाहिए। इस पर जस्टिस सिंह ने सुदीप सेठ से कहा कि शायद उन्होंने भारतीय संविधान की मूल प्रति को नहीं देखा, जिसके प्रारंभ में ही भगवान राम और रामायण कि अन्य चरित्रों के चित्र छापे गए हैं जिसमें सभी को बहुत ही शालीन वेशभूषा में दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच समझ कर के ही ऐसे चित्रों को रखा होगा। 

अधिवक्ता सुदीप सेठ जी के पास तब जवाब नहीं रह गया जब कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या वह अपने पूजा कक्ष में आदिपुरुष फिल्म में दिखाए गए पहनावे वाले वेशभूषा के आराध्य को रखेंगे! 

और आगे की बात करें तो कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश डिप्टी सॉलीसीटर जनरल एसबी पांडे से पूछा कि आखिर केंद्र सरकार क्या कर रही है! स्वयं सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म रिलीज करने के लिए दिए गए प्रमाण पत्र का रिव्यू क्यों नहीं करती है । 

जब पांडे ने कहा कि सेंसर बोर्ड में संस्कारवान लोग थे, जिन्होंने फिल्म को पास किया । तब कोर्ट ने कटाक्ष किया कि ऐसे संस्कारवान लोगों का भगवान ही मालिक है जिन्होंने फिल्म पास की।

मूवी के डायरेक्टर और डायलॉग राइटर को यह मालूम होना चाहिए कि सिनेमैटोग्राफी लिबर्टी के नाम पर कुछ का कुछ नहीं कर देना चाहिए।

वास्तव में यदि आपने इस मूवी को देखा होगा तो आपको मालूम चल गया होगा कि इस मूवी के साथ कितने छेड़छाड़ किए गए।

यह मूवी रिलीज होने से पहले मनोज मुंतशिर शुक्ला जी बोल रहे थे कि यह मूवी रामायण पर बेस्ड है और विवाद सामने आ गया तो बोल रहे हैं कि यह मूवी रामायण से इंस्पायर्ड है।

गरुड़ की जगह आप चील को दिखा रहे हैं।

रावण चमगादड़ पर बैठकर उड़ता है।


शूर्पणखा वास्तव में भरे दरबार में आई थी लेकिन मूवी में दिखा रहे हैं कि अकेले मिल रही है।

मूवी में रावण के द्वारा मांस को हाथ लगाया जा रहा है।

डायलॉग ऐसा की सुनके आप को क्रोध आ जाए.. तेल तेरे बाप का, कपड़ा तेरे बाप का, जलेगी तेरे बाप का।

ऐसा लगता है कि मूवी को यह सोचकर बनाया कि कुछ भी बना दो बस धर्म डाल दो, लोग आएंगे देखेंगे पैसे छप जाएंगे। लेकिन भारत की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है कि आप उनकी भावनाओं के साथ छेड़छाड़ करें और लोग तब भी चुप बैठे।

आप कुछ बातों पर ध्यान देंगे तो पाएंगे कि ऐसा लगता है कि चमगादड़ को गेम ऑफ थ्रोंस के ड्रैगन से कॉपी किया गया है। बंदरों को हॉलीवुड की कोई मूवी है एजेस करके उस से कॉपी किया गया लगता है। लंका को, थॉर मूवी आपने देखा होगा वहां पर जो एसगार्ड होता है सेम टू सेम वैसा प्रतीत होता है बस उन्होंने क्या किया है कि वह एसगार्ड गोल्डन था और इसको इन्होंने ब्लैक में कर दिया। 


Kai fighting scenes Avengers endgame ki tarah lagte Hain.

एक बात मैंने गौर किया है कि जो सीट हनुमान जी के लिए रिजर्व करवाए थे। उसको आगे की लाइन में क्यों रिजर्व कराया गया। आप recliner सीट भी रिजर्व करा सकते थे। हम सबको मालूम है कि सबसे आगे बैठकर मूवी देखने में बिल्कुल नहीं अच्छा लगता है। और दूसरी ओर जहां पर सिंपल seat के लिए कम पैसे देने होते हैं, फॉर एग्जांपल 200 या 250 हो वही आपको Recliner seat के लिए 800 से लेकर 1000 ya 1200 तक चार्ज देना पड़ता है।

कंक्लूजन की बात करें तो समझ में आएगा इस मूवी का मेन उद्देश्य केवल और केवल पैसा छापना था। आजकल देश में धर्म की बातें बहुत ज्यादा हो रही हैं। Director or dialogue writer soche honge ki movie bnao Dharm ko jodo aur sabke samne paros do. Bahubali se Prabhas hit hue the. उनकी पॉपुलैरिटी को देखते हुए उनको राम का किरदार दे दिया गया। लक्ष्मण जी का किरदार इतना महत्वपूर्ण होता है। उसके बाद भी उनके किरदार पर ध्यान नहीं दिया गया। सोचो अगर यह मूवी आज की जनरेशन देखेगी तो क्या बोलेगी, क्या सोचेगी कि रामायण में वास्तव में ऐसे था लोग ऐसे ही लहजे में बात करते थे।  मैंने एक यूट्यूब चैनल पर रिव्यू देखा उसमें एक लड़का या बोलता हुआ दिखाई दिया गया की बहुत अच्छी कॉमेडी मूवी थी। फिलहाल इस मूवी का विरोध हो रहा है, टिकट प्राइस कम होने के बावजूद या कम कर देने के बावजूद भी लोग मूवी देखने नहीं जा रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में कई writ पड़ चुकी हैं जिस पर सुनवाई भी हो रहा है। मूवी के कई डायलॉग्स में बदलाव किया गया है। अब फ्यूचर में जो भी धर्म से जुड़े हुए मूवी आएंगे उसमें इस तरह उल जलूल डायलॉग या उल जलूल सीन डालने से लोग बचेंगे। 




Monday, 26 June 2023

Pyramid Visit 🔺



I thank PM Mostafa Madbouly for accompanying me to the Pyramids. We had a rich discussion on the cultural histories of our nations and how to deepen these linkages in the times to come.
-PM

BASTI- DUMARIYAGANJ ROAD 🛣️ Near BAIDA SAMAYA Mata Mandir BHANPUR


 

JCB 3DX in Bad Condition #jcb


 

श्री अमरनाथ जी की पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी प्रकट हो गए हैं। 🙏😍



श्री अमरनाथ जी की पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी जी पूरे आकार में विराजमान हो चुके हैं। अमरनाथ जी की यात्रा 1 जुलाई से शुरू हो रही है जो कि 31 अगस्त तक चलेगी। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने तीर्थ यात्रा को सुगम व सुविधायुक्त बनाने के लिए सभी तैयारियां कर ली है। 

अमरनाथ यात्रा के दोनों मार्गों पर इस बार लगभग 125 लंगर लगेंगे। श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने श्रद्धालुओं को निजी जरूरत की चीजों को साथ में लाने की सलाह दी है। 


-यात्रा पर जाने से पहले अपना चेकअप करा लें।
-रेनकोट साथ में रख ले।
-जरूरत की दवाइयां साथ में रख ले।
-20 से ₹50 के बीच में डंडा मिलता है वह भी साथ में रख लें। 



बराक ओबामा के भेदभाव का आरोप बेबुनियाद है।

हमारे देश के प्रधानमंत्री अमेरिका का दौरा कर रहे थे और वहां पर भारत के बारे में लोगों को बता भी रहे थे। दूसरी ओर ओबामा भारतीय मुसलमानों को लेकर भ्रामक बयान दे रहे थे। मुझे एक बात समझ में नहीं आता है कि ओबामा भारत के मुसलमानों के बारे में क्यों बोल रहे हैं जबकि भारत के मुसलमान यहां पर सुरक्षित हैं। ओबामा या कोई और जो भारत के मुसलमानों के बारे में यह बोलता है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं है, वह पाकिस्तान और बांग्लादेश के बारे में क्यों बात नहीं करता है। 

इन्हीं बातों को लेकर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी ने ओबामा को आड़े हाथ लिया। निर्मला सीतारमण जी ने कहा कि ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका ने 6 मुस्लिम बहुल देशों पर बमबारी की थी। इन देशों पर 26000 से अधिक बम गिराए गए थे। 

बराक ओबामा को यह सोचना चाहिए कि अगर भारत में अल्पसंख्यक के साथ भेदभाव होता तो दुनिया की छह इस्लामिक देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना सर्वोच्च सम्मान नहीं देते। हमारे भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी को 13 देशों से मिले सर्वोच्च सम्मान में से 6 मुस्लिम देशों के हैं। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी ने यह भी बोला कि अभी हाल में ही 90% से भी अधिक मुसलमान आबादी वाले देश मिश्र ने भी मोदी जी को अपने सर्वोच्च सम्मान 'आर्डर ऑफ द नील" से सम्मानित किया है। 


भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी मिस्र के बोहरा समुदाय की सबसे बड़ी मस्जिद में भी गए हैं। 26 सालों के बाद फिर से भारत का कोई प्रधानमंत्री इस मस्जिद में गया है। यह सब दर्शाता है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव का आरोप बेबुनियाद है। 




अमेरिका में लगाया गया था चेचक से बचाव के लिए पहला टीका

26 जून 1721 में अमेरिका के बोस्टन में डॉक्टर जबडील बॉय्ल्सटन ने चेचक से बचाव के लिए अपने 13 वर्षीय बेटे को पहला टीका लगाया था। 

उस समय चेचक महामारी के रूप में फैल रहा था।

 यह टीका पूरी तरह कारगर नहीं था।  चेचक के टीके की खोज ब्रिटिश डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने 1796 में  की थी।


Saturday, 24 June 2023

रात में ऐसी चलाने पर अधिक बिजली बिल आएगा और पीक आवर में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण चलाने पर

2024 के अप्रैल महीने के बाद अगर आप गर्मी से बचने के लिए रात में ज्यादा AC का यूज़ करेंगे, तो आपको ज्यादा बिजली का बिल देना होगा। ध्यान रखने वाली बात है कि दिन में बिजली का बिल कम आएगा क्योंकि दिन में सौर ऊर्जा से बिजली की आपूर्ति की जाएगी।

बिजली मंत्रालय की तरफ से तैयार किए गए नए बिजली टैरिफ को सरकार ने मंजूरी दे दी है। यदि आप दिन में ऐसी चलाएंगे तो मौजूदा जो बिजली की दर इस समय चल रही है उससे 20% कम बिल आएगा।
और रात में AC का यूज करने पर 10 से 20% तक ज्यादा बिजली का बिल आएगा।

इसके लिए बिजली ग्राहकों के अधिकार नियम 2020 में आवश्यक संशोधन किए जा चुके हैं।



देश में सौर और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादित बिजली की मांग बढ़े। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन दिन में होता है तो बिजली वितरण कंपनियां इन से बनी बिजली की खरीद दिन में ज्यादा करेंगी और पीक आवर में ज्यादा बिजली बिल आने की संभावना को देखते हुए आम ग्राहक इस दौरान बिजली की खपत में कमी बरतेंगे।



पीक आवर में यदि आप इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज से खाना बनाते हैं या वाशिंग मशीन से कपड़े धोते हैं तब भी आपको बिजली बिल ज्यादा देना होगा। और यदि यही सब काम आप ऑफ पीक आवर में करते हैं तो बिजली का बिल कम आएगा।

ऐसी व्यवस्था इसलिए की जा रही है जिससे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से बनी बिजली की मांग में कमी हो सके।

बिजली मंत्रालय ने यह भी बताया है कि टी ओ डी टैरिफ 10 किलोवाट या इससे ज्यादा की बिजली की खपत करने वाले ग्राहकों के लिए 1 अप्रैल 2024 से यह नियम लागू किया जाएगा। जबकि और दूसरे ग्राहकों के लिए एक अप्रैल 2025 से यह नियम लागू होगा।

सबसे जरूरी बात जो ध्यान देने की है कि कृषि क्षेत्र के ग्राहकों पर नई शुल्क व्यवस्था लागू नहीं होगी। जबकि जहां-जहां स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे वहां नई टैरिफ व्यवस्था तुरंत लागू की जाएगी।




Friday, 23 June 2023

क्यों होती है बलात्कार की घटनाएं और आखिर कब तक चलेगा यह अपराध?

बलात्कार मानव सभ्यता के विकास के उन तमाम दावों को झुठलाता है जहां पर यह कहा जाता है कि महिलाएं,बच्चे, बच्चियां सुरक्षित हैं। बलात्कार अपने स्वरूप में घृणित होने के साथ-साथ यह अपने प्रभाव में और भी अधिक घृणित है।

अन्य घटनाओं के इतर इस घटना में पीड़ित को ही सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। साथ ही साथ अन्य प्रकार की समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। बलात्कार सिर्फ शारीरिक बल द्वारा किया गया यौन दुराचार नहीं है बल्कि इसके दायरे में हुए तमाम यौन शोषण आते हैं जिन्हें किसी दबाव के कारण किया जा रहा होता है। बलात्कार एक जटिल फिनोमिना है और अलग-अलग बलात्कार की घटनाओं के पीछे कुछ समान और कुछ अन्य कारण काम करते हैं। हरियाणा हो या दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश हो या किसी अन्य राज्य में कोई बलात्कार की घटनाओं को एक तरीके से नहीं समझा जा सकता है। इसी तरह पिता, मामा, चाचा, भाई या पड़ोसी द्वारा किया गया बलात्कार अलग समझ की मांग करता है। अमीरों द्वारा गरीब महिलाओं से बलात्कार में ठीक वे कारण काम नहीं करते जो किसी गरीब द्वारा किसी अमीर महिला से बलात्कार के मूल में होते हैं। 

बलात्कार केवल महिलाओं या लड़कियों या बच्चों के साथ नहीं होता बल्कि छोटी उम्र के लड़कों, थर्ड जेंडर और पशुओं के साथ भी होता है। इस विविधता से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि बलात्कार के मूल में यौन इच्छा की आक्रामकता एक कारण के रूप में मौजूद भले हो, परंतु यह एक अकेला कारण नहीं है और ना ही महत्वपूर्ण। इसलिए बेहतर होगा कि बलात्कार के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए उसके कारणों पर विचार करें। 

पहले आइए इस प्रश्न पर गौर करते हैं कि उत्तर-पूर्व के मातृसत्तात्मक समाजों की तुलना में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे प्रांतों में बहुत ज्यादा बलात्कार क्यों होते है?

बलात्कार कानून व्यवस्था से ज्यादा समाज और संस्कृति का मसला है। इसकी जड़े पुरुषवादी सामाजिक संरचना या पितृसत्ता में धंसी हैं। ऐसे समाजों में हम पराया देखते हैं कि बच्चों की परवरिश की जो प्रक्रिया होती है वह लिंग भेद के मूल्यों पर टिकी दिखाई देती है। जिसकी वजह से बचपन में ही यौन आक्रमकता के बीज पड़ जाते हैं।

उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि लड़कों को(लड़कियों को नहीं) बचपन से ही बंदूक, तीर कमान, तलवार जैसे मरदाना खिलौने दिए जाने का परिणाम यह होता है कि हथियारों की मूल में बसी हिंसा की भावना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बनने लगते हैं.. उनके साहस, आक्रमकता का, शारीरिक मजबूती जैसे लक्षणों की प्रशंसा की जाती है और यदि वह विनम्र है, संवेदनशील है तो ऐसे गुणों के साथ अगर है तो उसका मजाक उड़ाया जाता है।
 यदि कोई लड़का रो देता है तो उसको लड़की बोल बोल कर चिढ़ाया जाता है। 

लड़कों को घर के काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है क्योंकि ऐसे कामों के लिए घर में मां बहने हैं और बाद में उसकी पत्नी होगी। उसको राजा बेटा कहकर संबोधित किया जाता है। इन्हीं सब कारणों से या ऐसी परवरिश से वह खुद को औरत का मालिक समझने लगता है। Is tarah ke parvarish ke Karan adhiktar ladke patni ke roop mein ek gulam ki Khoj karte Hain

वह पत्नी को तथाकथित आर्थिक सुरक्षा देकर बदले में उसकी आजादी ही छीन लेना चाहता है बल्कि उसे वस्तु की तरह इस्तेमाल करने का भी हक हासिल कर लेना चाहता है। वह शादी भी करता है तो घोड़ी पर बैठकर जाता है जैसे कि वह लड़ने या अपहरण करने जा रहा है। लड़की के घरवाले भी कन्यादान ऐसे करते हैं मानो कोई वस्तु सौंप रहे हों। जिस दिन उसका सुहागरात होता है उस दिन लड़का युद्ध जीतने की मूड में रहता है। वह साबित कर देना चाहता है कि उसने अपनी पत्नी के शरीर को भोगने का मुक्त लाइसेंस हासिल कर लिया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ ऐसे समुदायों में भी प्रथा है कि सुहागरात का जो बेड होता है उस पर बिछाई गई सफेद चादर पर सुबह लाल धब्बे ना मिले तो लड़कों के पुंसत्व पर ही संदेह किया जाने लगता है।

यौन संबंध के लिए पत्नी की कंसेंट इन समुदायों के पुरुषों की कल्पना से परे की वस्तु है। पत्नी का बलात्कार उनका दैनिक और विवाह से अधिकार बन जाता है । और जब लंबे समय से संचित यही दृष्टिकोण सड़कों पर उतर जाता है तो 'बलात्कार' कहलाता है।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बलात्कार की अधिकांश घटनाएं घर-परिवार के भीतर या आस पड़ोस में ही घटती है। इनमें से अधिकांश मामले तो कभी सामने ही नहीं आ पाते क्योंकि इसमें औरतों का ज्यादा नुकसान होता है। हम सभी जानते हैं कि पितृसत्तात्मक समाजों में औरतों की पूरी जिंदगी इस बात पर टिकी होती है कि उसका पति और परिवार उसे बेघर ना कर दे। अर्थात स्त्री की विवशता हो गई है कि वह परिवार जैसे संस्था पर आश्रित रहे भले संस्था से उसके शोषण को वैधता मिलती हो। 

स्त्रियों की जिंदगी का सबसे बड़ा जुआ यही है कि उन्हें कैसा पति और कैसा ससुराल मिलेगा। 

बलात्कार एक ऐसी घटना है जो लड़की या स्त्री की भावी जिंदगी को बर्बाद कर सकता है। हमारा समाज स्त्री की पवित्रता उसके शरीर से तय करता है, मन से नहीं। 

यह समाज बलात्कार को स्त्री के साथ हुई एक साधारण दुर्घटना के रूप में नहीं लेता बल्कि उसे विवाह और कई सामाजिक संबंधों से बेदखल कर देता है। औरत जिसके पास सामाजिक सुरक्षा का एकमात्र विकल्प परिवार है वह इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकती। इसलिए बलात्कार हो भी जाए तो अधिकांश मामलों में वह ना तो शिकायत करती है और ना ही पलट कर कोई जवाब देती है। धीरे-धीरे वह स्त्री सब कुछ सहन कर लेने की आदी हो जाती है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि लगभग 90 परसेंट से ज्यादा रिपोर्टेड केसेस घर के भीतर या आस पड़ोस में होते हैं।

अब दूसरे स्तर की बात करें तो बलात्कारी दमनकारी कार्यवाही की भूमिका के रूप में सामने नजर आती है। इस भूमिका में इसका इस्तेमाल किसी परिवार या समूह को नीचा दिखाने या उससे बदला लेने के लिए होता है। देखा जाए तो पाएंगे लड़कों द्वारा दी जाने वाली गालियां आमतौर पर दूसरे की मां बहन के बलात्कार करने की धमकियां ही होती है। ऐसी गालियां इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हमारे समाज में औरतों को यौन सुचिता को घर की इज्जत का प्रतीक बना दिया है।

किसी घर या समुदाय की इज्जत तार-तार करनी हो तो उसकी औरतों का बलात्कार करना सबसे सरल उपाय समझा जाता है। उदाहरण के रूप में देखें तो फूलन देवी का गैंगरेप यौनिक नहीं बल्कि जातीय दमन का मामला था। Sampradayik dangon ke dauran hamesha dabang samuh kamjor samuh ki auraton ka balatkar karte Hain।

बलात्कार के आंकड़ों को गहराई से देखेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश मामलों में यह सिर्फ यौन क्रिया का मामला ना होकर दोहरे और तिहरे दमन का मामला होता है। कई बलात्कारी ऐसे होते हैं जो क्रूरता से औरतों का अंग भंग तक कर देते हैं तो कुछ unnatural sex तथा मारपीट करके उन्हें नोच डालने की कोशिश करते हैं। यह सब इसलिए होता है कि इसे दूसरा समुदाय डर जाए, डराने के लिए सॉफ्ट टारगेट के तौर पर महिलाओं को चुना जाता है। क्योंकि बलात्कार करने वाले कायर होते हैं, बुजदिल होते हैं, इस समाज के गंदी नाली के कीड़े होते हैं। 

और आगे की बात करें तो यह मत समझिए कि बलात्कार में यौन आक्रामकता की कोई भूमिका नहीं होती है। बड़े शहरों में जो बलात्कार होते हैं उन वारदातों में यौन आक्रामकता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। दरअसल, किसी समाज में यौन इच्छाओं की तीव्रता और उसकी संतुष्टि के अवसरों में संतुलन होना बहुत ज्यादा जरूरी है। इस संतुलन का अभाव ही बलात्कार की वारदातों के लिए उर्वर भूमि का काम करने लगता है। समस्या यह है कि बड़े शहरों की संस्कृति ने पिछले कुछ समय में जिस अनुपात में यौन इच्छाएं भड़काई हैं उस अनुपात में हर वर्ग को उनकी पूर्ति के अवसर मुहैया नहीं कराए गए है। खास तौर पर बड़े शहरों का निम्न वर्ग इस वंचन का भयानक शिकार है और यही कारण है कि बड़े शहरों में रिपोर्ट रेप केसेस की घटनाओं में निम्न तथा निम्न मध्यम वर्ग के आरोपी बहुत ज्यादा अनुपात में पाए जाते हैं। 

और विस्तार में बात करें तो हम जानते हैं कि शहरों में मीडिया इंटरनेट की सघन उपस्थिति यौन अभिव्यक्तियों विशेषता पोर्न को सहज उपलब्ध बना देती है। वैसे तो पोर्न हर युग में रहा है पर आज का 'ऑडियो विजुअल पोर्न' प्रभाव पैदा करने के मामले में बहुत आगे हैं। देसी विदेशी पोर्न की उपलब्धता किशोरों और युवाओं विशेषता लड़कों को उसका दीवाना बना देती है। रात दिन नए एवं अनुभव की कल्पना में डूबे रहते हैं। टीवी पर दिखाए जाने वाले कई विज्ञापन उनकी यौन इच्छाओं को गैरजरूरी तौर पर भड़काते हैं। यह बात विशेष रूप से परफ्यूम, कंडोम तथा अंडरवियर आदि के विज्ञापन में दिखाई देती है जिनमें सुंदर लड़कियों का  ऑब्जेक्टिवफिकेशन होता है। आजकल ओटीटी भी सॉफ्ट पोर्न को पेश करने लगा है। यह सारे दृश्य युवाओं के अवचेतन मन पर धीरे-धीरे अपना असर डालती रहती हैं। 

पोर्न साइट्स देख देखकर लोगों की अजीबोगरीब इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। हमें इस बात का भी ध्यान देना होगा कि कैरियर में इतना ज्यादा कंपटीशन होने के कारण लोग सही समय पर सेटल नहीं हो पाते जिसके कारण विवाह की औसत उम्र लगातार बढ़ती जा रही है।  हमें मालूम है कि हम यौन इच्छाओं के विस्फोट की युग में रह रहे हैं। हमारे समय के लोगों की जितनी रुचि यौन अनुभव में है उतनी शायद कभी नहीं थी। या भूख कोई साधारण या नेचुरल नहीं है बल्कि इसका काफी बड़ा हिस्सा बाजार, फिल्मी गीतों और पॉर्न द्वारा रच दिया गया है।

अब आप सोच रहे होंगे कि जिस समाज में यौन इच्छाएं इतने भयानक तरीके से बढ़ी हुई है वहां उनकी पूर्ति की क्या विकल्प है? दरअसल, इन विकल्पों की दुनिया में काफी ऊंच-नीच है। जिस विज्ञापनीय सुंदरता के भोग के सपने लोग पाल रहे हैं वैसे सुंदरता समाज में कम लोगों तक सीमित है।
इन्हीं सब चीजों  के कारण एक भयानक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है जो कभी-कभी हत्या इत्यादि का कारण भी बन जाती है। इस व्यवस्था को सुंदरता का पूंजीवाद कहा जा सकता है। यूं तो यह पूंजीवाद विवाह व्यवस्था के भीतर हमेशा मौजूद रहा है और इसने सबसे सुंदर लड़कियां सबसे अमीर और ताकतवर पुरुषों को उपलब्ध कराई है पर आजकल यह सबसे भयानक रूप में मौजूद हो गया है। जो सुंदर और आकर्षक किशोर और युवा हैं वह इस पूंजीवाद के सबसे सफल खिलाड़ी हैं। अंग्रेजी स्कूलों में, अच्छे कॉलेजों में पढ़ने वाले युवकों को या मौका हमेशा उपलब्ध है कि वे तथाकथित स्मार्ट लड़कियों या विज्ञापन सुंदरियों से मैत्री साध कर अपनी यौन-इच्छाओं से मुक्त हो जाए। और जो लोग इस वर्ग से बाहर हैं उनके लिए यौन इच्छाओं के इस भड़काऊ बाजार में कुंठित रहना मजबूरी है। उनमें भी अमीरों को कोई दिक्कत नहीं है , दुनिया के हर बड़े शहर में सेक्स भी एक उत्पाद है जिसे खरीदा जा सकता है। Agar Jeb Bhari ho to apni pasand ke anusar sundarta ke is bajar mein kuchh bhi hasil kar sakte hain aur apne kunthaon se aasani se Bach sakte hain। बाकी वर्गों के पास अवैध रूप से बढ़ी हुई इच्छाओं की पूर्ति के कम मौके होते हैं। 

ऐसी कल्पनाओं के कारण ऐसे लोगों के भीतर कभी न मिटने वाली कुंठा भर जाती है। यही कुंठा किसी नाजुक छड़ में उन्हें मजबूर करती है कि वह सब आगे पीछे भूल कर किसी सुंदर स्त्री को दबोच लें और बाद में परिणामों की भयावहता देखकर पछताते रहे। 

इससे जुड़े और कारणों पर गौर करें तो पता चलता है कि इसका संबंध असंतुलित विकास, शहरीकरण और माइग्रेशन जैसे विषयों से भी है। हम सब जानते हैं कि बड़े-बड़े शहरों में लाखों लोग रोजगार की तलाश में अपना घर बार छोड़ कर आते हैं। यह बस, ऑटो, रिक्शा चलाते हैं या मजदूरी, चौकीदारी जैसे थकाऊ काम करते हैं। इन लोगों की आय इतनी कम होती है कि यह लोग अपने परिवार अपने बच्चों को साथ में नहीं रख पाते हैं। ऐसे लोगों को ना पारिवारिक आत्मीयता नसीब होती है और ना ही होमली प्रेम की दुनिया। इनका काम इतना बोझिल होता है कि वह सृजनात्मक संतोष नहीं दे पाता। यह संपूर्ण भावनात्मक व सृजनात्मक असंतोष एक और इन्हें शराब और नशे की ओर धकेलता है तो दूसरी ओर इनकी यौन आक्रमकता और अपराध करने की हिम्मत को बढ़ाता है। 


मेडिकल साइंस के कुछ लोगों द्वारा कही गई इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन पुरुषों में यौन आक्रमकता पैदा करता है। तनाव से भरी जिंदगी के समानांतर हर समय आसपास मौजूद महानगरीय चकाचौंध इनकी शारीरिक भूख को उद्दीप्त कर देती है। इतनी ज्यादा कि यौन असंतोष इनका स्थाई भाव हो जाता है और बार-बार बेचैन करता है। उनके पास यह विकल्प होता है कि वह किसी वेश्या के पास चले जाएं पर वेश्यावृत्ति भी हमारे देश में गैरकानूनी है । अगर गैरकानूनी वाले पक्ष को छोड़ दें तो भी इनकी इतनी हैसियत नहीं होती कि वह फाइव स्टार होटलों की विज्ञापन वाले सुंदर कॉल गर्ल्स के पास जा सके।

 परंपरागत रेड लाइट इलाके में यह जा सकते हैं पर वह के सपनों को संतुष्ट नहीं कर पाता। कुछ देशों ने इस असंतोष को दूर करने के लिए सेक्सटॉयज की अनुमति दी है जो काफी हद तक इस अभाव की पूर्ति करने में कारगर साबित होती है। पर जो कि भारत में है विकल्प भी गैरकानूनी है ।

इसलिए कुंठित युवाओं के तनाव का विरेचन हो नहीं पाता। इन सब का परिणाम यह होता है कि वे दिमाग में लिए रहते हैं। यह एक अजीब सी कुंठा को जन्म देती है यही कारण है कि अगर कभी कोई  लड़की इनके जाल में फंस जाती है तो मामला सिर्फ रेप तक नहीं रह जाता बल्कि रेप के बहाने हर प्यास बुझा लेना चाहते हैं। उसकी शरीर से बदला लेना चाहते हैं। उसकी चीख किनके कुंठित मन को गहराई तक संतुष्ट करती हैं।

ज्यादातर बलात्कार का एक कारण सामाजिक दबाव की अनुपस्थिति में भी छिपा है । बलात्कार के अधिकांश अपराधियों को या भय नहीं होता कि उनका परिवार समाज इनका बहिष्कार कर देगा। 

बड़े शहरों में होने वाले बहुत से बलात्कार उन लोगों द्वारा किए जाते हैं जो बाहर दूसरे क्षेत्र से आए हैं। और अपने समाज के दबाव से तात्कालिक तौर पर मुक्त हैं। जातिवाद या सांप्रदायिक दमन के समय तो सामाजिक दबाव पूरी तरह हट जाता है । अगर समाज हित के रूप में ऐसे लोगो को अपराधी कर दें तो अधिकांश लोग ऐसी हिम्मत नहीं कर सकेंगे।

सामाजिक कानून से लड़ने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है। कानून के भय का उपस्थिति होने पर बलात्कार का स्पष्ट कारण अपराधियों को पता होता है कि कानून व्यवस्था बहुत लचर है, उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती । अदालत में यह साबित कर दिया जाता है कि यौन संबंध में लड़की की कंसेंट थी।

  हमें मालूम है कि न्यायाधीशों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। कानून की प्रोविजंस कमजोर है।

 अधिकांश मामलों में आरोपी जमानत पर छूटकर बाहर घूमते हैं और शिकायत करने वाली लड़की हमेशा दूसरी घटना के डर  के बारे में सोचकर जीने लगती है।

 कानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और थका देने वाली है यह बलात्कार से भी ज्यादा प्रताड़ित करती है।

 अदालतों के पास न्यायाधीश कम हैं और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुले हैं । वहां भी सजा हो जाए तो राष्ट्रपति से दया की अपील का प्रावधान है ।

यह सब होते होते न्याय का गला पूरी तरह घुट चुका होता है ।

अपराधियों के मन में कुल मिलाकर भय का संचार नहीं हो पाता । 

सवाल यह भी है कि बलात्कार की संस्कृति को कैसे रोका जा सकता है।

 इसके लिए कानूनी उपाय तो एक छोटा सा समाधान है। बहुत से उपायों को एक साथ लागू करने में डरना नहीं चाहिए कि सामाजिक उपाय धीरे धीरे से असर दिखाते हैं।

इसलिए संसय से बचते हुए कई उपायों को एक साथ लागू करना होगा। यौन आक्रमण के मामले के लिए पूरे देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए। इनमें महिला न्यायाधीशों की उपस्थिति पर बल दिया जाए। इन्हें मामला निपटाने के लिए अधिकतम 3 महीने का समय दिया जाए । किसी अदालत में ज्यादा मामले हो तो ऐसी ही दूसरी अदालत का मामला स्थानांतरित किया जाए   हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे ही अवधि निर्धारित करें राष्ट्रपति जैसे मामलों पर दयालु होने से बचे और 3 महीनों के भीतर दया याचिका का निपटारा करें । पीड़िता को मुक्ति मिले।


 अगर अदालत में तकनीकी माध्यम हो तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की मदद से उसकी गवाही हो ताकि उस पर दबाव न पड़े इसके अलावा अगर अपराधी न्यायाधीश के सामने गुनाह कबूल कर ले तो पहले अपराध की स्थिति में दंड की मात्रा कुछ कम भी की जा सकती है ताकि न्याय मिलने में देरी ना हो । 
अगर बलात्कार किसी छोटी बच्ची का हो या उसमें शामिल हो तो किसी भी स्थिति में जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

ऐसे मामलों के लिए हर शहर में पुलिस की विशेष शाखा खाएं क्राइम ब्रांच की तरह हों । जिनमें अधिकांश कर्मचारी महिलाएं हों, जो पुरुष कर्मचारी हों, उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह महिलाओं के दर्द को महसूस करें ।

 थर्ड जेंडर के अधिकारों तथा उनकी सामाजिक दशा के संबंध में संवेदनशीलता बनाए रखने के लिए इस विभाग के सभी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ।

वेश्यावृत्ति को समाप्त करना किसी समाज के बस की बात नहीं है इस बात पर गंभीर चर्चा का वक्त आ गया है कि क्या उसे वैधता प्रदान की जाए । इस कदम से बलात्कार की संभावना तो कम होगी और भी कई लाभ होंगे जैसे या दलालों द्वारा वेश्याओं के शोषण को रोकेगा उनके बच्चों के मानव अधिकारों को सुरक्षित करेगा । रेप को कम करने में भी सहायक होगा इसके अलावा प्लास्टिक ट्वॉयज के बारे में सोचा जा सकता है। अगर ऐसा हो जाए तो शायद हम संभावित बीमारियों से बच सकें।

पुलिस, सेना तथा अर्धसैनिक बलों के कर्मचारियों को नियमित अंतराल पर घर जाने का मौका मिलना चाहिए ताकि उनकी यौन संतुष्टि पूरा होंसके।  काम का दबाव और तनाव भी इतना नहीं होना चाहिए कि वह रेप का रूप ले ले । 

युवा कर्मियों को यथासंभव ऐसी जगहों पर नियुक्त किया जाना चाहिए कि वह चाहे तो अपने परिवार को साथ रख सके। आसानी से अपने घर आ जा सके ।

शहरों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की स्थिति सुधारने की कोशिश की जानी चाहिए कि नहीं इतना वेतन मिलना चाहिए कि वह अपने परिवार के साथ शहर में रह सके।

 छुट्टियां भी इतनी जरूर मिलेगी वह मानवीय तनाव से बच सकें और समय-समय पर अपने घर जा सके। काम की अवधि भी सामान्य स्थिति में 8 से 9 घंटे से ज्यादा ना हो।

महिलाओं की शिक्षा मिलेगा , यह सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए शिक्षा रोजगार परक हो कि वे धीरे-धीरे दूसरों का निर्भरता से मुक्त हो सके।

महिलाओ की उपलब्ध अधिकारों की विस्तृत जानकारी दी नहीं जानी चाहिए।


आत्मरक्षा का बुनियादी प्रशिक्षण उनके पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए ताकि वह सॉफ्ट टारगेट ना रहे ।

उन्हें आत्म रक्षा के लिए छोटे-मोटे उपाय जैसे मिर्च का स्प्रे सेफ्टी पिन भी साथ रखना के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

 उन्हें संपत्ति में हिस्सा दिए जाने का मामला गंभीरता से उठना चाहिए । उनकी सामाजिक सुरक्षा बढ़ेगी उतनी ज्यादा विरोध कर सकेंगी और अपराध कम हो जाएगा ।

एक ऐसे फंड का निर्माण भी किया जाना चाहिए आर्थिक सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि किसी दुर्घटना की स्थिति में उनका पुनर्वास आसान हो सके।

जिस तरह फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड की व्यवस्था है उसी तरह टीवी के विज्ञापनों और कार्यक्रमों के लिए भी होनी चाहिए। सरकार की अनावश्यक हस्तक्षेप से बचने के लिए इसकी सदस्यता समाज शास्त्रियों , प्राध्यापकों और न्यायाधीशों वरिष्ठ पत्रकार को कर दी जानी चाहिए।

 रात के 11:00 बजे से पहले वही कार्यक्रम दिखाया जाने चाहिए जो बच्चों के मन पर अनुचित प्रभाव न डाले।

पोर्न साइट्स को रोकने का उपाय हो सकता है तो किया जाना चाहिए ।

 स्कूलों में सेक्स एजुकेशन नियमित रूप से बताना चाहिए। 

बच्चों को गुड टच बैड टच के बारे में बताना चाहिए।

 किसी भी विधानमंडल या पंचायत के चुनाव में ऐसे व्यक्तियों के प्रत्याशी बनने पर रोक लगाई जानी चाहिए जिनको ऐसे किसी मामले में अपराधी सिद्ध हुआ हो या जिसके विरूद्ध न्यायालय को प्रथम दृष्टया रूप से दिखाई पड़े।


भारत के प्रधानमंत्री का अमेरिका दौरा 🚁 #NarendraModiInUSA

श्रीकांत शर्मा जी लिखते हैं कि हर देश के इतिहास में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जब सारे ग्रह योग उसके अनुकूल हो जाते हैं।

भारत भी इस समय ऐसे ही ऐतिहासिक अमृत काल में है।

भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि बहुत तेजी से हो रही है।

विश्व का हर देश भारत को अपने साथ देखना चाहता है।

अमेरिका और उसके मित्र देश जापान और आस्ट्रेलिया आदि चाहते हैं कि भारत चीनी विस्तारवाद को रोकने में उनका साथ दें। चीन चाहता है कि भारत अमेरिका की गुटबाजी से दूर रहे और एशिया को अमेरिकी वर्चस्व से मुक्त कराने में उसका साथ दें। यूरोप चाहता है कि भारत यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करें और रूस के विरुद्ध आर्थिक व कूटनीतिक लामबंदी में उसका साथ दें।

और तो और दक्षिणी गोलार्ध के देश चाहते हैं कि भारत उत्तरी गोलार्ध के देशों से जलवायु न्याय दिलाने में उनका साथ दें।

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा इसी अनुकूल ग्रह योग में हो रही है। यह उनकी पहली राजकीय यात्रा है। अमेरिका की राजकीय यात्रा का न्योता राष्ट्रपति के विशेषाधिकार और अमेरिका की बहुत ही अंतरंग एवं संधिमित्र देशों के राष्ट्राध्यक्ष को ही दिया जाता है।

अमेरिका ने चीन को दुनिया की फैक्ट्री बनाकर एक ऐसा भस्मासुर तैयार कर लिया है जिसकी हाथों में ऐसी सप्लाई चैन है जिसके जरिए पूरी दुनिया में तैयार माल जाता है। महामारी के लॉक डाउन और यूक्रेन युद्ध से साबित हुआ कि सप्लाई चैन का चालू रहना कितना जरूरी है और एक ही सप्लाई चैन पर निर्भरता कितनी खतरनाक होती है। इसलिए अमेरिका और यूरोप हिंदचीनी देशों और भारत को supply-chain का विकल्प बनाना चाहते हैं। 

अमेरिका यूरोप के नेता अब अपनी कंपनियों को चीन छोड़ने के बजाय चीन के अलावा एक और देश में कारोबार की सलाह दे रहे हैं जिसका अर्थ हम भारत समझ सकते हैं।

हमारे भारत के पास ऐसे प्रशिक्षित लोगों की बड़ी संख्या है जो अमेरिका यूरोप की बड़ी-बड़ी कंपनियों को चलाते हैं।

चीन दुनिया की फैक्ट्री है तो भारत उसका डिजाइनर और संचालन केंद्र है जिसके सहारे दुनिया चलती है। 
मोदी की अमेरिका यात्रा पर चीन, रूस, यूरोप और शेष दुनिया की नजर लगी है । भारत की तरह यूरोप चीन से सीधे दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहता लेकिन वह चाहता है कि भारत  यूक्रेन की अखंडता और प्रभुसत्ता पर हमला करने के लिए रूस की निंदा करें।

अमेरिका के ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनने के बाद से सऊदी अरब चीन की तरफ झुकता जा रहा है क्योंकि चीन उसका सबसे बड़ा ग्राहक और निवेशक बन गया है। यूक्रेन पर हमले के बाद रूस और चीन के रिश्ते में गहराई आ गई है। ईरान रूस को ड्रोन बेच रहा है। तुर्कीय के राष्ट्रपति अर्दोगन और मुखर होकर अमेरिका की आलोचना कर रहे हैं। यानी कि चीन के नेतृत्व में एक नया अमेरिका विरोधी खेमा तैयार हो रहा है। जिसमें रूस के अलावा उत्तरी कोरिया, ईरान, तुर्की और सऊदी अरब शामिल हो गए हैं।

इन बदलते भू राजनीतिक समीकरणों में अमेरिका के लिए भारत की महत्ता और बढ़ गई है। अब देखना यह है कि मोदी भारत के अनुकूल परिस्थिति का कितना लाभ उठा पाते हैं और इस यात्रा में कितने सौदे कर पाते हैं। पिछली सदी के नौवें दशक में चीन भी ऐसे ही अनुकूल स्थिति में था जिसका लाभ उठाते हुए वह तानाशाही के बावजूद 4 दशकों के भीतर विश्व की दूसरी महाशक्ति बन गया।

यदि चीन की चुनौती का जवाब देना है तो आर्थिक शक्ति बढ़ाकर ही दिया जा सकता है जिसके लिए अमेरिका और यूरोप से निवेश एवं तकनीक चाहिए।

अमेरिका यदि सच में चीन पर अंकुश लगाना चाहता है तो उसे भारत को अपने रक्षा, सेमीकंडक्टर और स्वच्छ तकनीक उद्योगों का डिजाइन और निर्माण केंद्र बनाना होगा..

| शिव कांत शर्मा जी बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक रह चुके हैं। | 

लेख पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!