Monday 2 October 2023

श्री बद्रीनाथ जी की यात्रा 🚩🙏


बद्रीनाथ तीर्थ हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है। यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है। इस धाम के बारे में कहावत है कि-"जो जाए बद्री,वो न आए ओदरी" यानि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता। प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है।


श्री बद्रीनाथ जी का मंदिर अलकनंदा के किनारे स्थित है।

"पौराणिक कथाओं के अनुसार"- भगवान विष्णु को ध्यान करने के लिए यह स्थान पसंद आ गया था। जब भगवान विष्णु को यह मालूम चला कि बद्रीनाथ में भगवान शिव और पार्वती जी पहले से निवास कर रहे हैं, तब विष्णु भगवान ने नीलकंठ पर्वत के पास बालक रूप में अवतार लिया। जब माता पार्वती और भगवान शिव भ्रमण के लिए निकले तो उन्हें दरवाजे पर छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। भगवान शिव को यह बात मालूम था कि या छोटा बच्चा कौन है लेकिन माता तो माता होती हैं माता पार्वती छोटे बच्चों को गोद में उठाकर अंदर लेकर चली गई। जब बच्चा चुप हो गया और सो गया। तब भगवान शिव और माता पार्वती पास में बने कुंड में स्नान करने के लिए चले गए। वापस आकर जब माता पार्वती और भगवान शिव ने देखा तो यह पाया कि अंदर से छोटे बच्चे ने दरवाजा बंद कर लिया था। भगवान शिव दरवाजा नहीं तोड़ना चाहते थे क्योंकि वह बच्चा माता पार्वती का प्रिय हो चुका था। 

इस प्रकार भगवान शिव और का माता पार्वती को बद्रीनाथ स्थान छोड़कर केदारनाथ में जाकर बसना पड़ा। 

आगे हम आपको बताते हैं कि बद्रीनाथ नाम कैसे पड़ा, भगवान विष्णु जब तपस्या में लीन हो गए तब बर्फबारी से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने बेर के पेड़ का रूप लेकर भगवान विष्णु को ढक लिया। भगवान विष्णु की जब तपस्या पूरी हुई और उन्होंने देखा की माता लक्ष्मी बेर के पेड़ के रूप में उनकी रक्षा करी हैं। तब भगवान विष्णु ने बोला की तपस्या में लक्ष्मी जी ने बराबर तप किया है इसलिए अब इस स्थान का नाम बद्रीनाथ के रूप में जाना जाएगा। क्योंकि बेर के पेड़ को बद्री भी कहते हैं। 

मंदिर में तीन संरचनाएं पाई जाती हैं- गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप, और सभा मंडप।

मंदिर की सीढ़ियां धनुष आकर में हैं।

भगवान की 1 मीटर की शालिग्राम की मूर्ति है।


शंकराचार्य जी ने बद्रीनाथ का मंदिर फिर से बनवाया था।

आठवीं सदी की शुरुआत तक बदरीनाथ बौद्ध मठ था। आदि शंकराचार्य ने बौद्ध मठ को परिवर्तित करवाकर बदरीनाथ धाम बनाया और हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया था।


मंदिर के मुख्य द्वार पर, भगवान विष्णु की मूर्ति के ठीक सामने, गरुड़ पक्षी (भगवान बद्रीनारायण का वाहन) की मूर्ति विराजमान है जो हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं।

ऐसी मान्यता है कि 6 महीने मनुष्य बद्रीविशाल की पूजा करते हैं और बाकी के 6 महीने स्वयं देवता गण लोग बद्रीविशाल की पूजा करने के लिए आते हैं। 

6 महीने बाद जब मंदिर का कपाट खुलता है तब भी दीपक जलता हुआ मिलता है।

मंदिर के बाहर गर्म कुंड है इसके स्रोत का अभी तक पता नहीं लग पाया कि यह गर्म पानी आता कहां से है।

अब हम बात करते हैं अपनी यात्रा के बारे में..

श्री केदारनाथ जी के दर्शन करने के बाद रात में हम लोग जीएमवीएन के अकोमोडेशन में रुके हुए थे।
सुबह 6:00 बजे उठकर नहा धोकर हम लोग अपने ड्राइवर अंकल के साथ 7:00 बजे श्री बद्रीनाथ के लिए गाड़ी से निकल गए जिसकी दूरी लगभग 225 से 230 किलोमीटर है। 

हल्की-फुल्की बारिश के साथ हम लोग रास्ते में चलने लगे। 2 दिन पहले हुई बारिश के कारण जगह-जगह पर रास्ते खराब हो गए थे। उत्तराखंड प्रशासन का इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए की खराब रास्तों को जल्द से जल्द चलने लायक बना देते हैं। हमारे ड्राइवर अंकल ने हम लोगों को बताया की कुछ रास्ते ऐसे खराब हुए हैं जहां पर कभी इस बात की संभावना नहीं थी कि रास्ते खराब हो जाएंगे। 

पहाड़ों में चलते-चलते ऐसा ऐसा लग रहा था कि बादलों में चल रहे हैं। बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था एक-एक पल हम लोगों को सुख प्रदान कर रहा था। 

रास्ते इतने अच्छे कि आप वहां जाकर ही अनुभव कर सकते हैं।  आधा रास्ता तय करने के बाद हम लोगों को जोशीमठ का वह स्थान दिखाई दिया जहां पर पहाड़ धंस रही हैं। रास्ते में हम लोग नरसिंह भगवान के मंदिर पर पहुंच गए। नरसिंह भगवान के मंदिर में पहुंचकर हम लोगों ने भगवान जी के दर्शन किए। वहां पर विराजमान मूर्ति का एक हाथ पतला होता जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन या हाथ पतला होते-होते टूट जाएगा उसे दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ और केदारनाथ का अस्तित्व उसी में विलीन हो जाएगा। उसके बाद भविष्य के केदारनाथ और बद्रीनाथ का दर्शन होगा। भगवान नरसिंह के मंदिर में दर्शन करने के बाद हम लोग पुनः बद्रीनाथ मंदिर की ओर प्रस्थान कर दिए।

    नरसिंह भगवान मंदिर 


शाम को लगभग 6:00 बजे हम लोग बद्रीनाथ पहुंच गए। बद्रीनाथ मंदिर के आसपास कंस्ट्रक्शन का काम बहुत तेजी से हो रहा था। वहां का टेंपरेचर इतना था की गाड़ी से उतरते ही दांत कपकपाने लगे।

हमारे ड्राइवर अंकल ने वहां पर हम लोगों को एक रूम दिला दिया जिसका प्राइस ₹1000 पर नाइट था। 

1 घंटे बाद हम लोग श्री बद्री विशाल के दर्शन के लिए निकल गए। 1 किलोमीटर चलने के बाद भगवान बद्री विशाल का मंदिर दिखाई देने लगा। 200 मीटर की दूरी से मंदिर का दृश्य देखकर पूरे मन को सुकून पहुंच गया। इतना सुंदर मंदिर इतना सुंदर मंदिर की ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हम लोग साक्षात स्वर्ग में आ गए हैं। बद्रीनाथ मंदिर के सामने बहती हुई अलकनंदा मंदिर की शोभा बढ़ा रही थी। 

मंदिर के पास पहुंचने की खुशी ऐसी थी जिसको शब्दों में नहीं बताया जा सकता।

बद्रीनाथ मंदिर की ऐसी महानता या ऐसा चमत्कार है कि मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही वहां का टेंपरेचर नॉरमल हो जाता है और मंदिर के बाहर आते ही आपको ठंड लगने लगता है। मंदिर के अंदर दर्शन करने के बाद हम लोग मंदिर के बाहर आकर बने कुर्सियों पर बैठ गए। मंदिर को देखते हुए ऐसी खुशी का अनुभव हो रहा था ऐसी खुशी मिल गई थी ऐसा सुकून मिल रहा था कि अब जब आप खुद वहां जाएंगे तो आपको महसूस होगा।

8:00 बजे मंदिर का कपाट बंद हो गया। 

9:00 बजे तक हम लोग रात का खाना खाकर अपने कमरे पर जाकर आराम करने लगे। और सुबह हम लोग 7:00 बजे हरिद्वार के लिए निकल गए। शाम को 7:00 तक हम लोग हरिद्वार मां गंगा के पावन तट के पास पहुंच गए। 

तो कुछ इस तरह से रहा अपना श्री बद्रीनाथ जी की यात्रा।










































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